NRC ( नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बिल) नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर है,जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। उनकी पहचान की जाएगी।
NRC का मुख्य उद्देश्य विदेशी नागरिक और भारतीय नागरिक की पहचान करना है। NRC बील का उद्देश्य भारत में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों का पहचान कर उसे देश से बाहर निकालना है।
सरल भाषा में कहें तो NRC वह प्रक्रिया है जिसमें देश में गैर कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है।
आपको बता दें NRC की शुरुआत 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुई थी। अभी या केवल असम में ही लागू है।
असम के अलावा अभी किसी दूसरे राज्य में NRC लागू नहीं है. लेकिन NRC पूरे देश के सभी राज्यो में लागू किया जा सकता है।
तो आइए हम और आप NRC के बारे में विस्तार से जानते हैं।
NRC Kya Hai (NRC in Hindi) ?
NRC full form: National Register of Citizens
NRC ( नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बिल) नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर है,जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा।
NRC का मुख्य उद्देश्य विदेशी नागरिक और भारतीय नागरिक की पहचान करना है। NRC बील का उद्देश्य भारत में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों का पहचान कर उसे देश से बाहर निकालना है।
सरल भाषा में कहें तो NRC वह प्रक्रिया है जिसमें देश में गैर कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है। आपको बता दें NRC की शुरुआत 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुई थी। NRC केवल असम में ही लागू है।
NRC का इतिहास (History of NRC in Hindi)
दोस्तों हमें उम्मीद है कि अब आप समझ गए होंगे कि NRC क्या है और इसे क्यों लागू किया गया। लेकिन अब आपके मन में भी सवाल होगा कि आखिर NRC की जरूरत क्यों पड़ी। NRC क्यों लागू किया गया। तो आइए हम NRC के इतिहास के बारे में जानते हैं।
NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) का इतिहास असम से जुड़ा हुआ है। क्योंकि असम ही एक इकलौता ऐसा राज्य है जहां NRC लागू किया गया है। NRC की शुरुआत 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में हुई थी। लेकिन अब NRC भारत के सभी राज्यों में लागू हो सकता है। NRC के लागू होते हैं देशभर में बहुत बहस छिड़ गई है।
NRC के चलते असम में रह रहे लगभग 19 लाख से अधिक लोगों पर से देश से निकल जाने का खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि असम में NRC के लागू होते हैं NRC में शामिल होने के लिए असम में लगभग 3.30 करोड़ से अधिक लोगो ने आवेदन दिया था लेकिन उसमें से 3.11 करोड लोगो को ही NRC की अंतिम सूची में जगह मिली है।
यहां हमें यह भी जान लेना जरूरी है कि 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन की याद तब पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया गया था। तब असम को पूर्वी बंगाल से जोड़ा गया था।
जब देश का बँटवारा हुआ तो यह डर भी पैदा हो गया था कि कहीं पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग न कर दिया जाए। तब गोपीनाथ बर्डोली की अगुवाई में असम में विद्रोह हुआ और सब अपनी रक्षा करने में तो सफल रहा लेकिन सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया 1950 में असम देश का राज्य बना
यह रजिस्टर्ड 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था और इसमें तब के असम के रहने वाले लोगों को शामिल किया गया था।
अंग्रेजों के जमाने में काम करने और खाली पड़ी ज़मीन पर खेती करने के लिए बिहार और बंगाल के लोग जाति रहते थे। इसलिए असम के स्थानीय लोग बाहरी लोगों का विरोध करते थे।
50 के दशक में असम में बाहरी लोगों का आना राजनीतिक मुद्दा बनने लगा था। इसके अलावा आज़ादी के बाद में भी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद के बांग्लादेश से असम में ग़ैरक़ानूनी तरह से (अवैध रूप से) लोगों के आने का सिल-सिला नहीं रुका और विरोध के बाद आने का सिल-सिला भी जारी रहा।
ऐसा माना जाता है कि 1971 में जो पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान सेना ने दमनकारी कार्रवाई शुरू की तो लगभग 10 लाख लोग ने बांग्लादेश सीमा पार कर असम में शरण ली। जिसमें सभी धर्मों के लोग जैसे- हिंदू, मुस्लिम, पारसी सभी धर्म के लोग थे।
इंदिरा गांधी उस समय भारत की प्रधानमंत्री थी। उन्होंने साफ कहा था कि शरणार्थी चाहे किसी भी धर्म की हो उन्हें वापस जाना ही होगा। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि उन शरणार्थियों को हम अपनी आबादी में नहीं मिलाने वाले हैं। इंदिरा गांधी ने यह भी कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने भारत पर गंभीर बोझ डाला है यह लोग भारत की राजनीतिक स्थिरता और आज़ादी के लिए खतरा बनते हैं।
लेकिन कुछ दिन बाद 16 दिसंबर 1971 को जब बांग्लादेश घोषित कर दिया गया। जिस के कुछ दिन बाद हिंसा में काफी कमी आई। हिंसा कम होने बाद बांग्लादेश से भारत आए बहुत सारे लोग अपने वतन लौट गए। लेकिन लाखों की संख्या में लोग असम में भी रुक गए।
1971 के बाद भी बांग्लादेश से लोगों का आना जारी रहा। जिसके फलस्वरूप वहां की जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई। जिसके कारण स्थानीय लोगों में भाषा, सांस्कृतिक, और राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा होने लगी।
जिसके कारण वहां कई आंदोलन हुए। आंदोलन के नेताओं ने दावा किया कि राज्य में जनसंख्या का 30-35% हिस्सा बाहर से आए लोगों का है।
उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि वह असम की सीमाओं को सील करें बाहरी लोगों की पहचान करें उनका वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाए। जब तक ऐसा नहीं होता है असम में कोई चुनाव नहीं कराई जाए। इसके अलावा उन्होंने यह भी मांग की कि 1961 के बाद असम में जो भी लोग आए हैं उन्हें उनके मूल राज्य में वापस भेज दिया जाए।
बाहरी लोगों में बांग्लादेशियों के अलावा बिहार और बंगाल से आए लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी थी। आंदोलनकारियों के विरोध करने के बाद भी केंद्र सरकार ने 1983 में असम में विधानसभा चुनाव करवाने का फैसला लिया।
आंदोलन से जुड़े कई संगठनों ने चुनाव का बहिष्कार किया। हालांकि चुनाव हुए लेकिन जिन क्षेत्रों में और असमिया भाषी लोगों का बहुमत था वहां बहुत कम 3 फ़ीसदी ही वोट पड़े।
राज्य में आदिवासी भाषाई और संप्रदायिक पहचानो के नाम पर ज़बरदस्त हिंसा हुई। जिसमें 3 हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए।
फरवरी 1983 में हजारों आदिवासियों ने नेल्ली क्षेत्र के बांग्ला भाषी मुसलमानों कि दर्जनों गांव को घेर लिया और 7 घंटे के अंदर दो हजार से अधिक बांग्ला भाषी मुसलमानों को मार दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चुनाव के बहिष्कार के बाद भी बंगाली मुसलमानों ने चुनाव में वोट डाला था।
यह स्वतंत्र भारत के तब तक का सबसे बड़ा नरसंहार था। इस नर-संहार में कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए थे। लेकिन देश की सबसे जघन्य नरसंहार के अपराधियों को सजा तो एक तरफ उनके खिलाफ मुकदमा तक नहीं चला।
इधर चुनाव होने के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। लंबे समय तक समझौता-वार्ता चलने के बावजूद आंदोलन के नेताओं और केंद्र सरकार के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी।
क्योंकि यह बहुत जटिल मुद्दा था। यह तय करना आसान नहीं था कि कौन “बाहरी” या विदेशी है। और ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें कहां भेजना चाहिए।
इस तरह 1984 में यहां के 16 संसदीय क्षेत्रों से 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव नहीं हो पाया। वहां राष्ट्रपति शासन भी लागू हुआ। लगातार आंदोलन होते रहे और कई बार तो आंदोलनों ने हिंसक रूप अख्तियार किया। राज्य में अभूतपूर्व जातीय हिंसा की स्थिति पैदा हो गई।
हालांकि इस दौरान आंदोलनकारियों और केंद्र सरकार के बीच बात-चीत चलती रही।जिसके परिणाम स्वरूप 1985 के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और आंदोलन के नेताओं के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौता के नाम से जाना जाता है।
15 अगस्त 1985 के भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में असम समझौते की घोषणा की।
असम समझौता के तहत 1951 से 1961 के बीच आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिक और वोट देने का अधिकार देने का फैसला किया गया। और यह भी तय किया गया कि जो लोग 1971 के बाद असम में आए थे उन्हें वापस भेज दिया जाएगा।
1961 से 1971 के बीच आए लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया लेकिन उन्हें नागरिकता के सभी अधिकार दिए गए। केंद्र सरकार द्वारा असम के विकास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की गई।
वहां आयल रिफाइनरी, पेपर में और तकनीक संस्थान स्थापित करने का फैसला किया गया। इसके अलावा केंद्र सरकार ने यह भी फैसला किया कि असमिया भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान की सुरक्षा के लिए विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय करेगी।
इसके बाद इस समझौते के आधार पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया।विधानसभा को भंग करके 1950 में ही चुनाव कराए गए।
चुनाव के बाद असम गण परिषद पार्टी को बहुमत मिलने पर असम गण परिषद पार्टी के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद असम में चुनाव होते रहे और अलग-अलग पार्टी के मुख्यमंत्री बनते रहें। कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन भी लागू हुआ।
2001 चुनाव में कांग्रेस ने फिर बाजी मारी तब उस समय तरुण गोगोई को असम का मुख्यमंत्री बनाया गया। लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के खिलाफ भाजपा ने 2016 के चुनाव में जीत हासिल की।
2016 में सर्बानंद सोनोवाल को असम का मुख्यमंत्री बनाया गया जो कि असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी हैं।
यह तो हो गया असम के मुख्यमंत्री की बात अब वापस लौटते हैं NRC की तरफ।
1985 में असम में राजीव गांधी किस साथ जो समझौता लागू हुआ था।उसकी समीक्षा का काम 1999 में केंद्र की तत्कालीन भाजपा सरकार ने शुरू किया।
17 नवंबर 1999 को केंद्र सरकार ने तय किया की असम समझौता के तहत NRC( नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बिल) को अपडेट करना चाहिए। लेकिन यह पहल ठंडे बस्ते में चली गई।
इसके बाद 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फैसला लिया कि NRC को अपडेट किया जाना चाहिए। उस समय तरुण गोगोई असम के मुख्यमंत्री थे। गोगोई सरकार ने असम के कुछ जिलों में NRC की प्रक्रिया शुरू की लेकिन राज्यों की कुछ हिस्सों में हिंसा होने के बाद इसे रोक दिया गया।
इसके बाद राज्य की गोगोई सरकार ने मंत्रियों के एक समूह का गठन किया। उन मंत्रियों को कहा गया कि वह असम के संगठनों से बातचीत करके NRC को अपडेट करने में उनकी मदद करें। लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। ये प्रक्रिया भी ठंडे बस्ते में चली गई।
इसके बाद असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित अन्य कई संगठनों ने 2013 में इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
2013 से 2017 तक के इन 4 सालों के दौरान और असम के नागरिक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 40 सुनवाईया हुई। इसके बाद नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 31 दिसंबर 2017 तक वह NRC को अपडेट कर देंगे।
हालांकि बाद में इसमें और समय की मांग की गई। यह काम सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में की गई। जुलाई 2018 में फाइनल ड्राफ्ट पेश किया गया। जिसमें 40 लाख लोगों को शामिल नहीं किया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों पर किसी तरह से सख़्ती बरतने पर फिलहाल के लिए रोक लगाई है।
वही चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया है कि NRC से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी नाम हट जाएंगे। उन्हेंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 के तहत मतदाता के पंजीकरण के लिए तीन जरूरी अनिवार्यताओं में आवेदक का नाम होना, न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना, और संबंध विधानसभा क्षेत्र का निवासी होना, शामिल है।
NRC in Assam
असम में NRC मूल रूप से राज्य में रहने वाले भारतीय नागरिकों की एक सूची है। बांग्लादेश की सीमाओं वाले राज्य में विदेशी नागरिकों की पहचान करने के लिए नागरिकों का रजिस्टर को निर्धारित किया गया।
राष्ट्रीय नागरिकों का रजिस्टर (NRC) भारत सरकार द्वारा असम राज्य के भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए नाम और कुछ प्रासंगिक जानकारी रखने वाला रजिस्टर है।
रजिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई, जिसमें राज्य के लगभग 33 मिलियन लोगों को यह साबित करना था कि वे 24 मार्च 1971 से पहले के भारतीय नागरिक थे।
अद्यतन अंतिम एनआरसी 31 अगस्त को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 मिलियन से अधिक आवेदक सूची में शामिल होने में असफल रहे।
NRC Ke Liye Kya Document Chahiye
दोस्तों अब हमें उम्मीद है कि आप NRC से संबंधित जानकारी आपको मिल गया होगा. NRC असम में लागू हो गया है। NRC अब पूरे देश में कभी भी लागू हो सकता हैं। तो ऐसे में हमें यह भी मालूम होना चाहिए कि NRC में शामिल होने के लिए क्या-क्या डॉक्यूमेंट होना जरूरी है।
तो आइए हम आपको बताते हैं कि NRC में शामिल होने के लिए आपके पास क्या-क्या डॉक्यूमेंट होनी चाहिए।
NRC Documents in Hindi
NRC में शामिल होने के लिए आपके पास होनी 1951 से पहले का निवास प्रमाण पत्र, भूमि संबंधी कागज़ात, किराएदारी का रिकॉर्ड, पासपोर्ट, LIC पॉलिसी और एजुकेशन सर्टिफ़िकेट डॉक्यूमेंट की आवश्यकता होगी।
आइए विस्तार से जानते हैं NRC के आवश्यक डॉक्यूमेंट के बारे में
25 मार्च 1971 से पहले असम में रहने वाले लोग असम के नागरिक माने जाएंगे। NRC के डॉक्यूमेंट को समझने और आसान करने के लिए दो सूची बनाई गई है।
1. पहली सूची
2. दूसरी सूची
पहली सूची में जो लोग आते हैं उन्हें अपने कागज़ात जमा करने होंगे। वहीं दूसरी सूची में आने वाले लोग को असम में अपने पूर्वजों से संबंधी कागज़ात जमा करने होंगे।
पहली सूची में आने वाले लोग से माँगे गए कागज़ात इस प्रकार हैं:-
- 1951 की NRC में नाम
- 24 मार्च 1971 से पहले मतदाता सूची में नाम
- नागरिकता प्रमाण पत्र
- स्थाई निवासी प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट
- LIC
- सरकार द्वारा जारी कोई भी प्रमाण पत्र या लाइसेंस
- सरकारी नौकरी के कागज़
- बैंक खाता या पोस्ट ऑफिस में खाता
- जन्म प्रमाण पत्र
- कोर्ट से जुड़े दस्तावेज़
- ज़मीन या किराए का रिकॉर्ड
- रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र
- बोर्ड यूनिवर्सिटी का प्रमाण पत्र
उपयुक्त दस्तावेज़ आपके नाम से ना होकर आपके माता-पिता/दादा-दादी आदि में से किसी के नाम है तो दूसरी सूची के इन कागज़ात की आवश्यकता होगी/
दूसरी सूची इस प्रकार है:-
- जन्म प्रमाण पत्र
- ज़मीन का काग़ज़
- बोर्ड या यूनिवर्सिटी का प्रमाण पत्र
- बैंक एलआईसी पोस्ट ऑफ़िस का रिकॉर्ड
- विवाहित स्त्री के मामले में सर्किल अफ़सर या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा जारी प्रमाण पत्र
- मतदाता सूची
- राशन कार्ड
- कोई अन्य मानी कानूनी दस्तावेज
दोस्तों अब हमें उम्मीद हो गया है कि अब आप NRC के बारे में सब कुछ जान गए होंगे। NRC kya hai NRC का इतिहास क्या है NRC में शामिल होने के लिए किन-किन डॉक्यूमेंट की आवश्यकता होती है।