Karwa Chauth 2022: करवा चौथ हिन्दुयों का एक प्रमुख त्योहार है। पर बहुत सारे लोगो को इसके बारे में पता भी नही होगा कि Karwa Chauth Kya Hai करवा चौथ क्यो और कैसे मनाया जाता है, करवा चौथ का क्या महत्व है अपने भारत मे इसको करने से क्या होता है।
आज हम बात करेंगे, करवा चौथ के बारे में की इसको भारत मे लोग मानते कैसे है ये पर्व क्यों मनाया जाता है।
आज हम अपने लेख में करवा चौथ को विस्तार से जानेंगे कि अपने भारत देश मे इस पर्व का इतना महत्व क्यो है।
यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को मनाया जाता है भारत देश मे सभी सौभाग्यवती स्त्री इस पर्व को अपने पति के लंबी आयु के लिए मानती है।
Karwa Chauth क्या है?
करवा चौथ हिन्दुयों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है यह पर्व देश के अनेक राज्यो में बहुत धूम – धाम से मनाया जाता है पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राज्यस्थान जैसे अनेक राज्यों में बहुत धूम- धाम से मनाया जाता है।
यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है यह पर्व सौभाग्यवती स्त्रीयां अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है।
करवाचौथ दो शब्दों से मिलकर बना है करवा + चौथ
करवा का मतलब होता है कि मिट्टी का बर्तन और चौथ मतलब चतुर्थी।
इस त्योहार में मिट्टी का बर्तन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है।
सभी विवाहित स्त्रिया इस पर्व का साल भर इंतजार करती है और इस पर्व को बहुत ही श्रद्धा-भाव से करती है माना गया है कि इस पर्व से पति-पत्नी के अटूट रिश्ते, प्यार, विश्वास और रिस्तो में मजबूती बनाये रखने का प्रतीक है यह त्योहार।
करवा चौथ का त्यौहार हमारे भारत देश के सभी विवाहित स्त्री अपने पति के लम्बी आयु के लिए करती है।
करवा चौथ का सच क्या है? (करवा चौथ का इतिहास)
करवा चौथ का परंपरा बहुत सी प्रचीन कथाओ के अनुसार देवताओं के समय से चली आ रही है।
कथाओ के अनुसार माना जाए तो देवताओं और दानवों के बीच एक बार युद्ध शुरू हुआ था जिसमें देवताओं की हार हो रहा थी ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए, और रक्षा की प्राथना किये।।।
तब ब्रह्मदेव ने इस संकट से बचने के लिए सभी देवता की पत्नी को बोले की अपने अपने पति के लिए व्रत रखें और सच्चे दिल से उनके विजयी के लिए प्रर्थना करना चाहिए।
सभी देवियों ने ब्रह्मदेव की बातों को स्वीकार किए तथा अपने-अपने पति की लम्बी उम्र की कामना के लिए उपवास भी रखी फिर देवताओं की जीत हुई।
ब्रह्मदेव के बात के अनुसार सभी स्त्रियों ने कार्तिक मास के चतुर्थी के दिन इस पर्व को किये। तब अपने पतियों की विजयी को सुनकर सब ने अपना वर्त खोला और खाना खाया उस समय अकाश में चांद भी निकल आया था,,उसी दिन से इस पर्व को मनाया जाने लगा जिसको करवा चौथ वर्त के नाम से जाना जाने लगा।
स्त्री को शक्ति का रूप माना जाता है इसलिए उसे यह वरदान मिला है की वो जिस चीज के लिए सच्चे मन से तप करेगी, उसे उसका फल अवश्य मिलेगा।
करवा चौथ के दिन किस देवी देवता की पूजा की जाती है?
इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिके, गणेश और चंद्र देवता की पूजन कि जाति है।
करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है घर मे सुख,शांति, समृद्धि और संतान का सुख मिलता है।
इस त्योहार में मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस किसी लड़की या स्त्री के हाथों की मेहदी ज्यादा रचती है , उसे अपने पति तथा ससुराल से ज्यादा प्रेम मिलता है।
करवा चौथ के इस पर्व को कब मनाया जाता है?
करवा चौथ के इस पर्व को कार्तिक मास के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है
इस पर्व को मानने के लिए सभी विवाहित स्त्री पूरे दिन उपवास करती है फिर रात को चांद के दर्शन के बाद ही अपना पर्व तोड़ती है ।
पुर्णिमा के चांद के बाद जो चौथ पड़ती है, उसी दिन करवा चौथ मनाया जाता है ।
Karva Chauth Date 2022
करवा चौथ 2022 में भारतीय समय के अनुसार
प्रारंभ :- गुरुवार 13 अक्टूबर ( 3:08am ) बजे
समाप्ति :- शुक्रवार 14 अक्टूबर ( 6:50pm ) बजे
करवा चौथ की कहानी?
करवा चौथ की कहानी यह है कि देवी करवा अपने पति तुंगभद्रा के साथ नदी के किनारे रहती थी, रोज के तरह उसके पति एक दिन नदी में स्नान करने गए,, तो मगरमच्छ ने उनके पैर को पकड़ लिया और नदी में खीचने लगा अपने पति को मौत के मुँह में यानी मौत के करीब जाते देख पत्नी करवा दौर के नदी के पास पहुँची और एक कच्चे धागे से मगरमच्छ को पेड़ में बांध दी।
करवा के सतीत्व के कारण ऐसे मगरमच्छ उस कच्चे धागे से बांध गया कि वो इधर से उधर नही हो पा रहा था करवा के पति के साथ-साथ उसका भी जिंदगी मौत के करीब लगने लगा। दोनों के प्राण संकट में फस चुके थे।
उसके बाद करवा ने यमराज को पुकारा और उनसे बोला कि मेरे पति को जीवनदान और इस मगरमच्छ को मिरत्युदण्ड मिलना चाहिए, इस पर यमराज बोले ये संभव नही है इस मगरमच्छ का जिंदगी अभी बचा है पर तुम्हारे पति का जिंदगी खत्म है ये नही हो सकता।
इस पर करवा गुस्सा हो कर बोली अगर आपने ऐसा नही किया तो हम आपको क्षाप दे देंगे क्षाप से डर कर यमराज ने करवा की बात मान ली और मगरमच्छ को यमलोक भेज कर उसके पति को जीवनदान दिए ।
इसलिए करवा चौथ में सुहागिन स्त्रियां करवा माता से प्रर्थना करती है कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति की रक्षा की वैसे ही मेरे पति का भी रक्षा करना।
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करवा चौथ क्यों मनाया जाता है | करवा चौथ मनाने का क्या कारण है?
करवा चौथ पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्रप्ति के लिए इस दिन सुहागन सब करवा चौथ मानती है। इस दिन सुहागन लोग पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती है और चंद्रमा की पूजा करती है।
चंद्रमा के साथ-साथ भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिक, तथा श्री गणेश जी की भी पूजा की जाती है।। तब इसको करने से फल की प्रप्ति होती है यह पर्व कार्तिक माह के चतुर्थी को मनाया जाता है इसलिए इसे करवाचौथ कहते है।
करवा चौथ नारियो का त्योहार है हिन्दू धर्म में नारी शक्ति को शक्ति के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि नारी के पास ऐसा वरदान है कि वो अपने मन क्रम से जिस भी कार्य मनोकामना के लिए व्रत करेगी उसे अवश्य प्राप्त होगा।। खासकर अपने पति के लिए कोई व्रत करती है उसका फल उसको अवश्य मिलता है।
कथाओ की बात माने तो माता पार्वती शिव जी को पाने के लिए तप और व्रत करती रही तथा माँ सावित्री अपने मृत पति को तप और व्रत के बल पर यमराज से छुड़ाकर लाती है। स्त्री में इतनी शक्ति होती है कि अगर वो चाहे तो अपने तप के दम पर कुछ भी पा सकती है। इसलिए महिलाये करवाचौथ के रूप में अपने पति के लंबी उम्र के लिए व्रत करती है।
तप का अर्थ होता है किसी चीज को त्याग कर किसी चीज को पाने के लिए आगे बढ़ना
जैसे महिलायें अन्न जल सब कुछ त्याग कर अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती है, चांद को देखने के बाद ही इस व्रत को सम्पूर्ण समझा जाता है।
करवा चौथ त्यौहार कैसे मनाया जाता है?
सबसे पहले सुबह उठकर महिलाये सर्गही खाती है,, उसके बाद अपने शादी के जोड़े में सज धज कर पुरे दिन भूखी-प्यासी रहती है फिर दिन में शिव,पार्वती,कार्तिक की पूजा करती है।
और शाम में करवा देवी की पूजा करती है जिसमे अपने पति की लम्बी उम्र की कामना की जाती है।
फिर चांद का इंतजार करती है ,जब तक चाँद का दर्शन नही होता तब तक उनका इंतजार करती है, जब चाँद दिख जाता है फिर उसके बाद महिलायें छलनी से चाँद और पति की छवि देखती है। उसके बाद पति पानी पिलाकर व्रत खुलवाता है।
क्यों देखते हैं करवाचौथ पर छलनी से चांद
करवा चौथ के दिन छलनी का भी काफी महत्व होता है, पूजा के थाली में सभी चीजों के साथ छलनी भी अपनी खास जगह पर होती है। छलनी से अपने पति और चंद्रमा को देखकर ही व्रत पूरा करती है महिलायें।
करवा चौथ में छ्लनी से देखने का एक पौराणिक कथा है, व्रत छल से न तोड़ दे, इसलिए अपने हाथों में छलनी रखकर उगते हुए चांद को देखने की परम्परा शुरू हुआ।
कहा जाता है कि एक बार वीरता नाम की स्त्री ने शादी के बाद यह व्रत किया, लेकिन सुबह से भूखी-प्यासी रहने के कारण उसका तबियत बहुत खराब हो गया। तब उसके भाई ने चाँद निकलने से पहले एक पेड़ की आड़ में छलनी में दीप रखकर बहन को कहने लगे कि चांद निकल गया, इस पर वीरता ने अपना व्रत खोल दिया और उसके पति की म्रत्यु हो गयी।
जब विरता को इस छल के बारे में पता लगा तो वो परेशान हो गयी और अपने पति के सव के पास बैठ कर साल भर करवा माँ की पूजा किया,और अगले साल पूरा नियम से करवाचौथ का व्रत किया, इस पर करवा माँ खुश हो कर उसके पति को जीवित कर दी।
उसी समय से किसी महिला का व्रत छल से न टूटे इसलिए छलनी में देखने के बाद ही व्रत पूरा होता है।
करवाचौथ व्रत की पूजा विधि
हिन्दू धर्म के अनुसार करवाचौथ का व्रत बहुत ही पवित्र माना गया है। करवा चौथ सुहागन स्त्रियों का एक पवित्र त्योहार है इसमें अपने पति के लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। अपने पति के अच्छे सेहत और उनके सुख के लिए ये व्रत करती है।
चलिए आज हम जानते है इस व्रत को कैसे किया जाता है:- सबसे पहले
– सूर्योदय से पहले स्नान करे और व्रत का संकल्प ले।। और पूरा दिन निर्जला रहे यानी जलपान या किसी चीज का सेवन न करे।
– प्रात: इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुथीज़् व्रतमहं करिष्ये।’
– अब जिस जगह पर आप पूजा करने जा रहे हैं वहाँ उस दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावल को पीसें। इस घोल से करवा को बनाये।। इस विधि को करवा धरना कहा जाता है।
– फिर आठ पूरियों की अठावरी बनाकर उसके साथ हलवा बनाएं और पक्के पकवान भी बनाएं।
– पीली मिट्टी से गौरी माँ की मूर्ति बनाए और उनकी गोद में गणेशजी को रखे।।।
– मां गौरी को लकडी के सिहांसन पर बिठाएं और फिर उसके बाद लाल रंग की चुनरी ओढाकर उन्हें अन्य श्रंृगार की सामग्री अर्पित करें। अब इसके सामने जल से भरा कलश रखें।
– गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं।
– विधि पूवर्क पहले गौरी गणेश की पूजा करें और करवाचौथ की कथा का पाठ करें।
– पूजा के बाद घर के सभी वरिष्ठ लोगो के चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें।
– फिर रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और अपने पति को और । और फिर चन्द्रमा को अर्ध्य दें।
– इसके बाद अपने पति का आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजा के लिए मंत्र
इस पूजा के लिए 5 मंत्रो का प्रयोग किया जाता है।
* पार्वतीजी का मंत्र – ॐ शिवायै नमः
* शिव का मंत्र – ॐ नमः शिवाय
* स्वामी कार्तिकेय का मंत्र – ॐ षण्मुखाय नमः’
* श्रीगणेश का मंत्र – ॐ गणेशाय नमः
* चंद्रमा का पूजन मंत्र – ॐ सोमाय नमः
करवा चौथ का महत्व
कार्तिक मास के कृष्ण के चतुर्थी तिथि को इस पर्व को मनाते है। इस पर्व को सुहागिन महिलाये अपने पति के लम्बी उम्र, उनके जिंदगी में कोई कष्ट न हो , या अपने पति की दुख को दूर करने के लिए करती है।
इस व्रत को कुंवारी कन्याओं भी अपने मनचाहा पति की प्राप्ति के लिए करती है।
माना जाता है कि करवाचौथ एक ऐसा त्योहार हैं जिससे सुहागिन स्त्रियों अपने के रक्षा और उनके लम्बी उमर की प्रार्थना के लिए करती है।।।माँ पार्वती भी शिव को पाने के लिए तथा मा सावित्री भी अपने मृतपति के जीवनकाल के लिए की थी।
करवाचौथ पर्व का महत्व अपने पति के आयु और उसके दुख को दूर करने के लिए किया जाता है।
दोस्तों आज हमने जाना करवाचौथ पर्व के बारे में, इस पर्व को कैसे और क्यो किया जाता है। इस पर्व का क्या महत्व है, अनेको जानकारी इस लेख में हमने जाना
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