गुरू पूर्णिमा 2022– आज हम अपने लेख में बात करेंगे गुरु पूर्णिमा के बारे मे। गुरु पूर्णिमा का महत्व सनातम धर्म मे बहुत ही खास है।
चलिय आज हम बात करते है Guru Purnima Kya Hai गुरु पूर्णिमा क्यो मनाया जाता है तथा इसका क्या महत्व है।
आज हम अपने लेख में विस्तार से जानेंगे आखिर गुरु पूर्णिमा होता क्या है, तथा इसको क्यो मनाया जाता है।
सनातन धर्म मे गुरु पूर्णिमा का एक खास महत्व है,,इस दिन गुरुओं की पूजा एवं उनका सम्मान करने का परम्परा है।
तो चलिय हम बात करते है गुरु पूर्णिमा की।
गुरु पूर्णिमा क्या है (What is Guru Purnima in Hindi)
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु का खास दिन होता है, इस दिन सनातन धर्म से गुरु का गुरु पूर्णिमा के दिन एक खास महत्व है, इस दिन गुरुओ की पूजा करना तथा उनका सम्मान करने का परंपरा है।
गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनो को समर्पित परम्परा है जिन्होने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और पबुद्ध बहुत ही कम खर्च या बिना किसी मौद्रिक खर्च के अपने सुविचार को दूसरे के प्रति साझा करने के लिए तैयार हो।
गुरु पूर्णिमा त्योहार को भारत, भूटान, और नेपाल में हिन्दू,जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस दिन सनातन धर्म के पहले गुरु महार्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर शिष्य अपने गुरुओ की पूजा करते है। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी गुरूयो के साथ भगवान विष्णु और भगवान बृहस्पति की भी पूजा को जाती है।
कहा जाता है कि ब्रमर्षि वेदव्यास ने ही वेदो का ज्ञान दिया था। इन्ही कारणों से सनातन धर्म मे इनको आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है।
गुरु पूर्णिमा कब मनाया जाता है?
गुरु पूर्णिमा अषाढ़ मास के पूर्णिमा को हर साल मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होने वेदो का चार भागों में विभाजन किये थे।
मनुष्य के चारो वेदो के ज्ञान देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म अषाढ़ मास के पूर्णिमा के दिन हुआ था तब से उस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
महर्षि वेदव्यास ने वेदों को 4 खंडों में बंटा जो इस प्रकार है
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद
गुरु पूर्णिमा 2022 में कब है?
गुरु पूर्णिमा 2022 में 13 जुलाई बुधवार के दिन है।
गुरु पूर्णिमा मनाया जाना उचित होगा।
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 13 जुलाई दिन बुधवार को प्रात: काल 04:00 बजे से
गुरु पूर्णिमा तिथि समापन – 14 जुलाई दिन की रात 12 बजकर 06 मिनट पर
गुरु पूर्णिमा कौन से माह में मनाई जाती है?
यह पर्व हिन्दू पंचाग के हिन्दू माह आषाढ की पूर्णिमा को हर साल मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है
गुरु पूर्णिमा को पूरे भारतवर्ष में बहुत ही श्रद्धा से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म मे गुरु की बहुत महता बहुत बताई गई है, गुरु का स्थान समाज मे सर्वपरि बताया गया है।
गुरु चमकते हुए उस चांद की तरह होता है जो अंधेरे में रौशनी देकर पथ-प्रदर्शन करता है। गुरु के समान कोई नही है क्योकि गुरु भगवान तक जाने का रास्ता दिखाते है।
इस पर कबीर ने गुरु का गुणगान करते हुए अपने दोहे में गुरु के महिमा को ऐसे गुणगान करते है-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।
इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है –
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरु पूर्णिमा मनाने का मुख्य कारण यह है कि इसी दिन अषाढ़ मास के पूर्णिमा को चारो वेदो का ज्ञान देने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। तब से इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
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गुरु पूर्णिमा की कहानी
अषाढ़ मास के पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ तब से गुरु पूर्णिमा इस दिन को मनाया जाता है, कहा जाता है कि इस दिन वेदव्यास जी ने अपने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था।
पौराणिक कथा के अनुसार वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश कलावतार है। इनके पिता ऋषी पराशर तथा माँ का नाम सत्यवती था।
वेदव्यास को बचपन से ही अघ्यात्म में रुचि थी, इसलिए इनहोनो वन में जाकर तपस्या तथा देव दर्शन की इच्छा प्रकट किए।
इनहोने जब अनुमति मांगी तो माँ ने ठुकरा दिए तब इनहोनो हट कर लिया तो माँ ने जाने की अनुमति दे दी।
इनके कठिन त्याग और तपस्या से वेदव्यास को संस्कृत भाषा मे प्रवीणता प्राप्त हुआ।
इसके बाद वेदव्यास ने वेदो का विस्तार किया, और महाभारत, अठारह महापुरनो सहित बरमसूत्रो की रचना किये। इन्हें बादरायण भी कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
धार्मिक ग्रंथो और पुराणों के अनुसार बताया गया है कि जैसे व्यक्ति किसी इच्छा प्राप्ति के लिए भगवान से प्राथना करता है ठीक वैसे ही जीवन मे सफलता पाने के लिए गुरु की सेवा और भक्ति करना चाहिए।
साथ ही गुरु प्राप्ति के लिये, गुरु की सेवा,बात और गुरु का इज्जत करने में हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए, गुरु को हमेशा खुश रखना चाहिए, उनके हिर्दय को कभी दुखाना नही चाहिये क्योंकि गुरु ही शिष्य के जीवन को अंधकार से मिटाकर प्रकाश फैलता है । अतः गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व कैंसे मनाया जाता है?
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान ध्यान कर के भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजा करना चाहिए। इसके बाद महर्षि वेदव्यास जी की पुजा किया जाता है।। क्योंकि इनके जन्मदिन के दिन ही गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन जरूरतमंद आदमी को पिले अनाज, पिला वस्त्र, तथा पिला मिठाई का दान करना चाहिए, इससे आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
इस दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना तथा जरूरतमंद आदमी को अन्न-वस्त्र इत्यादि दान करना चाहिए, इससे कुंडली का गुरु-दोष भी समाप्त होता है।
इस दिन कुमकुम के घोल से मंदिर के बाएँ एवं दाएं ओर स्वस्तिक का निशान बनाय तथा दिकप जलाये। ऐसा करने से घर का कलेश दूर होता है।
इस दिन अपने घर के प्रवेश द्वारा को आम के पते और मालाओ से सजाया जाना चाहिए, तथा इसके साथ इस दिन सूखे मेवे, फल, चावल के व्यंजन, पान के पत्ते और दूध दलिया देवताओं को अर्पित किए जाते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर शिष्य को अपने गुरु का सम्मान करते हुए उन्हें यथा शक्ति गुरु दक्षिणा प्रदान करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए
इस दिन गुरु पूजन का विधान है, वैसे तो पूरे देश मे अनेकों विद्वान है पर जो चारो वेद के विख्याता महर्षि वेदव्यास का आज पूजन दिवस है।
गुरु पूर्णिमा के दिन :
* सुबह घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करना।
* घर के किसी पवित्र स्थान पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
* फिर ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र से पूजा का संकल्प लेना है।।
* फिर दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
* फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी नाम के मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
* फिर अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करना चाहिए, तथा उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।
* इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
* गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा सब विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।
* इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, बल्कि अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
गुरु पूर्णिमा किसकी पूजा करते हैं?
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह नित्य क्रिया से निविरत होकर स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु और शिवजी का पूजन करना चाहिए और उसके बाद महर्षि वेदव्यास की पूजा की जाती है।
गुरु पूर्णिमा क्यों मानते है?
गुरुपूर्णिमा महर्षि वेदव्यास के सम्मान में अषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन वेदव्यास जी ने शिष्यों तथा मुनियों को सर्वप्रथम भागवतपुराण के बारे में जानकारी दी थी। इसलिए इस दिन को गुरुपूर्णिमा दिवस मनाया जाता है।
हमारे देश मे गुरुओ का बहुत सम्मान किया जाता है,,क्योंकि एक गुरु ही है जो शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही रास्ते पर चलना सिखाते है।
गुरु पूर्णिमा मनाने का सबसे प्रमुख कारण यह भी है की इसी दिन महाभारत,ब्रह्मसूत्र, भागवतपुराण और अठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले जन्म हुआ था।
गुरु के बिना शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नही है।। रामायण से लेकर महाभारत तक गुरु का स्थान सबसे ऊपर है। गुरु की महानता को देखते हुए कबीरदास ने अपने दोहा में बताया कि
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।”
यानी एक गुरु का स्थान भगवान से भी कई गुना ऊंचा होता है।।
गुरु पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, जो ऋषी पराशर के पुत्र थे। शास्त्रो के अनुसार महर्षि वेदव्यास को तीनों कालो का ज्ञाता माना जाता है, इसलिए इस दिन को गुरुपूर्णिमा मनाया जाता है।
तो दोस्तो आज हमने जाना गुरु पूर्णिमा के बारे में, गुरु पूर्णिमा क्यो मनाया जाता है तथा इसके बारे में अनेकों जानकारी इस लेख में हमने बताई
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